Sunday 10 July 2011

tapati.maiya: यदि ताप्ती जी के नाम से लोगो का कल्याण हो तो बुराई...

tapati.maiya: यदि ताप्ती जी के नाम से लोगो का कल्याण हो तो बुराई...: "हमारे जिले के विधायको को अपनी मातृभूमि या जन्मभूमि या जीवन दायनी पुण्य सलिला माँ ताप्ती से कितना प्यार है या उनके प्रति समपर्ण की भावना ह..."

यदि ताप्ती जी के नाम से लोगो का कल्याण हो तो बुराई क्या है


हमारे जिले के विधायको को अपनी मातृभूमि या जन्मभूमि या जीवन दायनी पुण्य सलिला माँ ताप्ती से कितना प्यार है या उनके प्रति समपर्ण की भावना है यी हाल ही में देखने को मिली। मुलताई के इंका विधायक सुखदेव पांसे ने बताया कि जब उन्होने प्रदेश गान में मां ताप्ती का नाम शामिल करने का ध्यान आकर्षण प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहा तब उन्हे प्रदेश के जन सम्पर्क एवं संस्कृति पंडित लक्ष्मीकांत शर्मा ने जो कहा वह सुन कर यदि सही मायने में मां ताप्ती का भक्त या सेवक होग ा वह कुछ भी अनर्थ कर लेगा लेकिन नाम से सुखदेव किसी को दुख देना नहीं चाहते और सब कुछ सुन कर आ गए जो एक जिम्मेदार प्रतिनिधि को नहीं सुनना चाहिए था। श्री पांसे क्या प्रदेश गान में अपने माता - पिता या परिवार के किसी सदस्य का नाम शामिल करवाना चाहते थे या फिर अपने गांव के नाले या पोखर का नाम जो पंडित जी के कहने पर मान गए और बैरंग वापस लौट आए। दरअसल में अब मुझे भी लगने लगा है कि मां ताप्ती ऐसे लोगो के माध्यम से अपना नाम प्रदेश गान में शामिल ही नहीं करवाना चाहती है जिसे अपने खुद के मान - सम्मान का ध्यान नहीं। सुखदेव पंासे ने अपने आप को सत्ता के सुख में ऐसा जकड़ लिया कि वह भी अपने मूल कत्वर्य को भूल गया है। मां ताप्ती के जन्मोत्सव का श्रेय कुमार बनने वाले सुखदेव पांसे को इस बार क्या हो गया आखिर वह ताप्ती मैया के नाम को शामिल करवाने के लिए संस्कृति मंत्री के सामने गिडगिडाने के बजाय उसे छठी का दुध याद दिलाने के लिए क्यों नहीं उतारू हुआ। ताप्ती मां कोई किसी की अपनी तो नहीं है वह प्रदेश का आम नदियों की तरह तो नहीं है। क्या ताप्ती नदी के किनारे डाकू , चोर उच्चके पलते है जो उसका नाम लेने से सरकार को परहेज हो रही है। शिवराज सिंह भूल रहे है और भूल रहे है पंडित लक्ष्मीकांत शर्मा ताप्ती बहन है शनि देव की यदि वह अपनी पर आ गई तो राजा से रंक और महल से सड़क पर आने में टाइम नहीं लगेगा। बार - बार एक ही मन में सवाल उठता है कि शर्मा जी को आखिर किसने मंत्री बनाया जिसे इस बात का भी थोड़ी से अक्ल नहीं कि वह यह कहे कि ऐसे हम सब नदियों को शामिल करते रहेगें तो फिर हो गया प्रदेश गान का सत्यानाश ..... शर्मा जी बेतवा और चम्बल से अच्छा इतिहास , भूगोल , पौराणिक , धार्मिक , पुरात्तवीक महत्व है मां ताप्ती का और आप क्या जानो ताप्ती को आपके लिए तो बेतवा का पानी ही काफी है। शर्मा जी भूल गए कि ताप्ती जीवित और मृत व्यक्ति को तभी ही नसीब होती है जब तजाप्ती स्वंय चाहे वरणा ऐसे कई नाम बताए जा सकते है कि जिन्हे गांव का नाला नसीब हुआ लेकिन पास रहने के बाद भी ताप्ती नसीब नहीं हुई। जिस गंगा को पंडित लक्ष्मीकांत शर्मा आप महान समझते है उस गंगा को धरती पर आने में दस बार सोचना पड़ा कि मैं जाऊ की नहीं यदि गई तो मेरा मान और सम्मान क्या रह जाएगा। पंडित जी पढ़े - लिखे हो तो कृपा कर सूर्य पुराण से लेकर वराह और स्कंद पुराण भी पढ़ लेना उसके बाद ताप्ती को मामूली नदी समझना .....वैसे शर्मा जी आप भूल रहे है कि भगवान सूर्य नारायण के सूर्यवंश में जन्मे भगवान श्री राम ने तीन दिन ताप्ती के किनारे रह कर अपने पितरो का तर्पण किया था और बारह ज्योतिलिंगो की स्थापना की थी। जिस राम के नाम की रोटी पंडित जी आप और आपकी पार्टी खा रही है उस राम को भी ताप्ती का जल अंतिम संस्कार के लिए नसीब नहीं हुआ। ताप्ती में उसी व्यक्ति की हडड्ी गलती है जिसे ताप्ती चाहेगी। तर्पण भी उसी व्यक्ति का ताप्ती में होता है जिसे मां चाहेगी। वैसे पंडित जी आपको इतिहास याद दिलाना चाहता हूं कि सिख्खो के सबसे पूज्यनीय गुरू नानक देव ने 14 दिन ताप्ती के किनारे तय करके व्यतीत किये थे। नारद ने बारह साल तक नारद टेकड़ी पर तपस्या की थी। महात्मा गांधी तीन दिन बारहलिंग में नजरबंद रहे और तीनो दिनो उन्होने मां ताप्ती को ही पूजा था। पंडित जी आपको पता नहीं कि गंगा में स्नान करने एवं नर्मदा मैया के दर्शन के बराबर का लाभ तो ताप्ती का नाम लेने से मिल जाता है। ऐसे में पंडित जी आपने मध्यप्रदेश के करोड़ो स्कूली बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया क्योकि यदि वे प्रतिदिन मां ताप्ती का नाम लेते तो उनका जीवन सफल हो जाता। मुझे तो कभी - कभी आपके पंडित होने पर भी शक होने लगता है क्योकि पंडित तो वेदो एवं पुराणो का ज्ञाता होता है। ताप्ती की कथा भी मैने पंडितो के मुख से ही सुनी थी और आप है कि ताप्ती के महात्म को समझ ही नहीं पा रहे है। पंडित जी इसमें आपकी गलती नहीं है क्योकि कहावत ही बनी हुई है कि अंधे के हाथ ही बटेर लगती है। मैं सुखदेव पांसे नहीं हूं जो ताप्ती का इस तरह का निरादर या अपमान सह जाऊं.....यदि मुझे अपनी मां के मान - सम्मान के लिए अपने प्राणो की बाजी भी लगानी पड़े तो पीछे नहीं हटूंगा क्योकि मेरा कल्याण तो अपनी ममतामयी पुण्य सलिला मां ताप्ती के आर्शिवाद से होगा। मैं रोज तो नहीं पर जब भी अपनी मां के निर्मल नीर में स्नान करने जाता हूं तो उसे बार - बार याद दिलाता हूं कि मां मेरा जनम से लेकर मृत्यु तक का संस्कार तेरे ही आंचल में हो और देखना पंडित जी ऐसा ही होगा। मुझे अपनी किस्मत और मां पर पूरा विश्वास है। पंडित जी बैतूल की नामचीन हस्ती और धन्ना सेठो को भी ताप्ती नसीब नहीं होती है लेकिन गांव का आम आदमी ताप्ती के किनारे मुक्ति पा लेता है। जिसके पीछे कारण यह है कि आदमी की नीयत क्या है...? जिस आदमी की नीयत साफ होगी मां उसे ही अपने आंचल में विश्राम का मौका देगी। आपको यदि अपना जीवन सुधारना है तो बेतवा का चक्कर छोड़ कर सीधे ताप्ती की शरण में आ जाओं इसी में भलाई है। एक बार जिदंगी और मौत से लड़ कर आ चुके हो ऐसे में क्यों शनि महाराज को नाराज करने में लगे हो क्योकि कोई भी भाई नही चाहेगा कि उसकी बहन का अनादर हो। पंडित जी अपनी सोच को ऊपर करके बड़े दिल से सोचिए कि यदि मां ताप्ती का नाम लेने से लोगो का कल्याण होगा तो ऐसा काम आखिर क्यों न किया जाए। मेरा काम आपको राह दिखाने का था इसलिए आपको इतना सब कुछ कह रहा हूं। मानाकि आप सरकार के मंत्री है लेकिन मैं भी कुछ कम नहीं हूं। मेरे पास भी मां की महिमा को जन - जन तक पहुंचाने का प्रचार एवं प्रसार विभाग का काम है। मैं भी प्रचार मंत्री हूं इसलिए मां की महिमा का प्रचार - प्रसार करना मेरा काम है। उम्र में आपके और मेरे बीच मे कुछ ज्यादा फर्क नहीं होगा क्योकि न तो आप साठ के है और न मैं साठ का हो गया हूं। ऐसे में आपके मेरे सठियाने का सवाल ही नहीं उठता है। पंडित जी पूरी रामायण सुनने के बाद ऐसा कोई सवाल मत करना कि मुझे दुख हो बाकि सब मां ताप्ती की कृपा आप पर मुझ पर बनी रही। जय मां ताप्ती